Monday, October 18, 2010

महफ़िल में यार आया हूँ...

मैं चाहतों की तेरी, महफ़िल में यार आया हूँ
उम्मीदें ज़िन्दगी से, मांगकर उधार लाया हूँ
नहीं देखा मैंने हँसता हुआ कोई चेहरा कभी
तेरी मुस्कुराहट पे करने जाँ-निसार आया हूँ

चांदनी खूब फिर खिलेगी शबनमी सी रातों में
यूँ ही हंस दे गर ज़रा तू अजनबी की बातों पे
हसरतें इतनी सी बस खुशियाँ मिलें तुझे सारी
रख कर पलकों पर यही ख्वाब हज़ार आया हूँ

मैं हूँ इक बंजारा और शहर - शहर भटकता हूँ
अक्स मासूम सभी दिल में बसा कर रखता हूँ
कहाँ मिलते हैं अब यहाँ प्यारे ऐसे सच्चे चेहरे
शायद ज़न्नत के किसी कूचे - बाज़ार आया हूँ

ग़मों के झरने ना बहें...कभी तुम्हारी आँखों से
दर्द के मन्ज़र ना सजें....कभी तुम्हारी राहों में
जहाँ से गुज़रो तुम गुलाबों की हों बरसातें वहाँ
इक अजनबी हूँ मगर, लेकर मैं प्यार आया हूँ


...........इक अजनबी कुछ अपना सा.............

2 comments:

  1. ग़मों के झरने ना बहें...कभी तुम्हारी आँखों से
    दर्द के मन्ज़र ना सजें....कभी तुम्हारी राहों में
    जहाँ से गुज़रो तुम गुलाबों की हों बरसातें वहाँ
    इक अजनबी हूँ मगर, लेकर मैं प्यार आया हूँ
    Nihayat sundar rachana! Wah!

    ReplyDelete
  2. protsaahan ke liye bahut bahut shukriya aapka kshama!

    ReplyDelete