Thursday, November 4, 2010

इस दीवाली...देख 'काफ़िर' ने

आँगन लड़ियों से सजा रखा है
मकान मैंने...जगमगा रखा है

खुश्बू से खिल उठें सभी चेहरे
इत्र से घर को महका रखा है

आएगा मेरे घर...ख़ुदा मेरा
मंदिर छोटा सा बना रखा है

हों ख़ताएँ मेरी मुआफ़ सभी
माँ को सामने बिठा रखा है

मांग लूँ सबके लिए ख़ुशियाँ
फ़कीर बाबा को बुला रखा है

ना हो अँधेरा किसी की राहों में
दीये सा दिल को जला रखा है

क्या करूंगा मैं सोने-चाँदी का
पिछला सब तो बचा रखा है

देखलूँ तुझको मैं भी तर जाऊं
दरिया आँखों से बहा रखा है

आ भी जा अबके बरस मौला
अलख कब से...जगा रखा है

अर्क मैंने...अज़ान में...अपनी
लेकर हर दर से मिला रखा है

झोलियाँ भर दे इलाही सबकी
दामन अपना...फैला रखा है

इस दीवाली...देख 'काफ़िर' ने
मज़ार पर खुदको झुका रखा है

.....इक अजनबी कुछ अपना सा.....

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