प्यार तुझ से मैं कुछ इस कदर करता हूँ
अक्स अपना मैं तुझ में नज़र करता हूँ
यूहीं उड़ता रहे तू मासूम परिंदों की तरह
अपनी बाहों को फैला तेरे मैं पर करता हूँ
जब तू हँसता है गम मेरे फ़ना हो जाते हैं
तुझमे जीता हूँ मैं तुझमें ही बसर करता हूँ
तेरी नासाज़ तबियत औ वो मुश्किल हालात
अब भी रातों में खुदा से बातें अक्सर करता हूँ
याद आती हैं तेरी तकलीफें अश्क बहते हैं मेरे
ख़ुशी के वर्कों पे दर्ज़ इनको अब मगर करता हूँ
गले से लगकर मुझे चूमा था जिस लम्हा तूने
मकां बदला मैंने अब तेरे दिल में घर करता हूँ
कहा दानिश ने के औलाद कहकशां है फूलों का
तेरी मुस्कराहट से मैं ज़िन्दगी समर करता हूँ
तुझको सीने से लगा बरसों सकून पाया मैंने
अब सिमटकर तुझमें गहरा ये असर करता हूँ
.............इक अजनबी कुछ अपना सा............
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