कुछ शब्द ज़हन में आते हैं...
कुछ आकर ठहर से जाते हैं...
कुछ हर्फ़ सुनहरी मोती बन
आकर दिल में बस जाते हैं...
आँखों में उमड़ते सागर को
बिन कहे बयाँ कर जाते हैं...
लिपटी हो सितारों में जैसे
चुपके से कहते जाते हैं...
हंसती है जब वो धीरे से
ज़मीं पे तारे गिरते जाते हैं...
होंठों पे सजीं उजली बूंदे
अमृतकुंड बनते जाते हैं...
तेरे रूप रंग से बह निकली
चिनाव में डूबे जाते हैं...
ये झिलमिल पलकों के साए
आवाज़ दिए से जाते हैं...
मासूम सी भोली मल्लिका का
आभास मुझे दे जाते हैं...
(इक अजनबी कुछ अपना सा)...
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